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बढ़ना सदा अकेला

बढ़ना सदा अकेला ,बढ़ना सदा अकेला जीवन के रास्ते मे राही कई मिलेंगे कई कारवाँ मिलेंगे अपने भी कुछ मिलेंगे। लेकिन पड़ेगा जब जब इस रास्ते मे संकट एक पल मे बिखरता है अपनों का ये झमेला। बढ़ना सदा अकेला,  बढ़ना सदा अकेला  कर देख लिया हमने अपनों पे है भरोसा  करता था आस उनपर देते थे जो दिलासा  जीवन के नाव की जब पतवार उनको सौंपी  उन सौम्य प्रियजनो भंवरों मे जा धकेला । बढ़ना सदा अकेला बढ़ना सदा अकेला । कब तक सहोगे धोखा सीमा है कोई आखिर  यह ध्यान रहे तुमको ऐ मस्त-मन मुसाफिर  अब आँख खोल सत्यम निज मन की बात सनले  अपना नहीं कोई है कोई गैरों का है ये मेला ।। बढ़ना सदा अकेला,  बढ़ना सदा अकेला ।।                                     ~ सत्यम शुक्ल ▪ 
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